आज एक मोर नाचा

बिन बारिश, बिन बादल के,
आज एक मोर नाचा

क्या उसने भगवान को देखा?
क्या उसने प्यार को पाया?
नहीं! पर मोर नाचा

उसके होठों पर खुशी नहीं सुकून था
उसके कदमों में ताल नहीं, संगीत था
उसकी पलकें चहक उठी थी
उसके पंख खुले हुए थे
क्या उसने जीत ली दुनिया?
क्या उसने जान लिया सब कुछ?
नहीं! पर मोर नाचा

जंगल का हर पौधा हैरान,
हर जीव उससे जल रहा
"यह कैसी बेवकूफी?"
सूरज भी भड़क उठा
क्या रुक गया नृत्य उसका?
क्या फर्क पड़ा इन सब बातों से?
नहीं! पर मोर नाचा

मोर की आंखों में देखो,
आसमान में बादल है 
हवा प्यार से महकी हुई
दिल से सब पागल है
क्या मिलता उसे ये सुकून,
कतराने, शर्माने से?
नहीं! इसलिए
बिन बारिश, बिन बादल के,
आज एक मोर नाचा

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