अगर मगर

(1)
अगर मगर में क्या रखा
रखा है सब कुछ
जहां सवाल सवाल न रहा
वह खामोशी फिर भी सादी है

ना पूछना मुझसे कि
ऐसा क्या हुआ जो चुप हूं
अगर मगर मैं मुंह खोल गया
फिर होनी बर्बादी है

(2)
मजाक लगता हूं मैं तुझे
मजाक तेरी चाल देख
ये बेअकल ये बेबुनियाद
उलझा जिसमें वो जाल देख
खुद माया का विदुषी
न पूछ मैं कब हारा

ये हार जीत अंत है
ये अंत शंट झूठ है
अगर मगर मझधार में
बह रहा है सच सारा

(3)
बादल विक्षोभ सुन जरा
सृष्टि विलोक कर जरा
सूर्य, चांद, तारें न बस
अंधेरा भी संसार है
मग्न किस व्यतीत में
ध्यान से तू चल जरा

थोड़ी देर धरा घुटे
थोड़ी हवा फिसल उठे
अगर मगर छोड़े निशान
कदम कदम समझ जरा

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