बात लफ़्ज़ों की नहीं
बात लफ़्ज़ों की नहीं
बात एहसासों की है
जिनमें रहके बीती है ज़िंदगानी
बात उन रातों की है
जहाँ दिखते हैं तारे हसरतों के ऊपर
जहाँ खिलते हैं ख़्वाब बंदिशों के ऊपर
उस आसमान में उड़ने की ख़्वाहिश है
उस गुलिस्ताँ में रहने की ख़्वाहिश है
इन चमकते सितारों के बीच एक चेहरा है
जो धीरे धीरे धूप के आँचल में ढल रहा है
जो आएगा फिर कल मुझे रिझाने
वो चाँद मेरा मुझसे कुछ कह रहा है
जिधर मेरे जज़्बात दफ़्न हैं
तुझे भी वहाँ रखता हूँ
होना न कभी रुख़्सत मुझसे
बस तुझे पाने की चाह रखता हूँ
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