
चेहरा
मैं आंखों-सा उत्सुक हूं,
तुम होठों-सी कोमल हो,
सांसों से जुड़ जाए,
एक चेहरा बन जाए
जब मैं कतराऊं कहने से, तुम बोल देना
जब तुम पलकों में छिपी, मैं झांक लूंगा
मैं इधर उधर तांकू तो टोकना मुझे
तुम ज्यादा न बोलो, मैं रोक दूंगा
साँझ की किरणें जब छुए हमें
हवाओं में सुकून की लहर हों
रात जब नज़दीक आने लागे
बदन में अमन का ज़हर हो
जब आखिरी शमां बुझने लगे
जब तारें घटा में छिपने लगे
न तुम कुछ कह पाओ, न मैं कुछ देख पाऊं
सांसों को थाम ले और खो जाए
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