एक तारा

इस अंधेरे में जब आँख खुली
तो दिखा एक तारा
इस रास्ते पर जब सिर घूमा
तो दिखा एक तारा

मैंने उसे घूरा
मैंने उसे नकारा
मगर जब भी डगमगाया
तो दिखा एक तारा

एक दिन सुकून से
मैंने मेरी रात सजाई
चुन चुन कर हर तारें पर
बादल की छटा बिछाई

बस वो और मैं बाकि
ये जग भी नींद को प्यारा
मैंने पूछा, कौन हो तुम?
तो कहता “एक तारा”

वो तो मुझे भी पता है
पर तू टिमटिमाता कहां है?
वही का वही, वैसा का वैसा
हर रात क्यों मिल जा रहा?

सवाल, ताने, गाली, समझ
अब मुझसे नहीं हो पा रहा
अब तो पूछ रहा हूं खुद से
क्यों देखा एक तारा

कितनी और रातें गुजर गई
सिर झुका के चलना सीख लिया
मगर जब जब देखा शीशे में
तो दिखा एक तारा

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