हाय! हाय! अकेला चलूं मैं

हाय! हाय! अकेला चलूं मैं
हाय! हाय रे! अकेला चलूं

चंद पत्ते, चंद सितारें है,
ये रास्ते चेहरों के मारे है,
न बिल्ली काट रही इनको,
न कुत्ते इनपर सोना चाहे,
बेबस, लाचार, परेशान,
ये मुझसे उम्मीद लगाए!
ऐसे में मैं क्या करूं?
हाय! हाय! अकेला चलूं मैं
हाय हाय रे! अकेला चलूं

ऐसा नहीं के लोग नहीं है
पर किसे पड़ी इन राहों की,
सब चलते है मदमस्त यहां,
सबने अपनी मनचाही की
कभी आगे की, कभी पीछे की,
किसने अब की वाह–वाही की
न पसंद मुझे ऐसे जीना,
बस असमंजस में रहना
अब बताओ मैं क्या करूं?
हाय! हाय! अकेला चलूं मैं
हाय हाय रे! अकेला चलूं

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