जब-तब

(1)
जब कोशिशें, ख्वाहिशें,
रातें भी राहगुज़र जब
जब चाहते, आदतें,
बातें भी राहगुज़र जब

जब जीवन सूखे पत्तों सा
बंधन टूटे पत्तों सा
तब हसरतें, मुसीबतें
हरकतें भी राहगुज़र तब

(2)
जब आरोह की तड़प
जब आरज़ू की तलब
जब आशिक़ी-सा गज़ब 
कुछ न रहे, न रहे

जब सूर्य की रोशनी
जब चांद की चांदनी
जब तारों की चमक
कुछ न कहे, न कहे

जब रूह को प्यास नहीं
जब मन को आस नहीं
जब कुछ न बाकी रह गया
तब क्या ढहे, क्या ढहे

जब रक्त लाल न रहा
जब वक्त कमाल न रहा
जब कोई मलाल न रहा
तब क्या मरे, क्या जीये

(3)
ये नभ झूठा ही सही
ये तारा टूटा ही सही
जब तक रूह की प्यास है
तब तक इनमें कुछ खास है

ये आज का यकीन है
ये कल का सुकून है
जब तक दिल में आस है
तब तक तन में सांस है

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