जिंदगी
बस बनती बिगड़ती बातों में जिंदगी
पूरी या अधूरी मुलाकातों में जिंदगी
इन्हीं रास्तों पर पनपती जिंदगी
इन्हीं रास्तों पर सिमटती जिंदगी
हवाओं के झोंके जो छूते बदन को
ख्यालों में पुरानी यादों की तरह
पैर में चुभ रहे जो कंकर
मन में खड़े सवालों की तरह
आज की कश्मकश में छिपी कल की यादें
और कल में छिपी एक नई जिंदगी
बस बनती बिगड़ती बातों में जिंदगी
पूरी या अधूरी मुलाकातों में जिंदगी
मन में छिपी है जो ख़्वाबों की नगरी
कर्मों के वेश में अक्सर झलकती है
इच्छाओं को पूरा करने की वासना
कर्त्तव्यों से बंद विभोर करती है
लेती है जो करवटें किस्मत इधर
सफलता की मृदंग शोर करती है
बस बनती बिगड़ती बातों में जिंदगी
पूरी या अधूरी मुलाकातों में जिंदगी
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