
कभी कोई आए मेरे घर
कभी कोई आए मेरे घर
तो उसे बोल देना
यहां रहता था जो
था बड़ा सयाना
मगर एक हरकत
से बिखर गया
चाहता था दिल की
करता था मन की
इस इधर उधर में
कही फिसल गया
कभी कोई आए मेरे घर
तो उसे पूछ लेना
आया क्यों भला?
अब क्या चाहिए?
रूह खो चुकी है
बदन थक गया है
खयाल सुनते नहीं
याद आती मगर
अब ठहरती नहीं
ऐसी बदनसीब से
क्यों है मिलना?
कभी कोई आए मेरे घर
तो उसे रोक देना
वही के वही
वैसे के वैसे
समय भी जगह भी
देखूं तो मैं भी
कितना है मुमकिन
अगर हां
तो किया क्यों नहीं
अगर ना
तो जरूरत क्यों पड़ी
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