क्षणिकाएँ - 1

यह तो मौसम का मिजाज़ है
दोपहर को शाम करदे
सूरज जब उड़ने लगे
बादल बदनाम करदे


काफिरों सी जिंदगी है
सवाल सारे सिफर है
मेरी रूह मर चुकी है
मेरा बदन बेखबर है


कितना हसीन मौसम है
क्यों न इसमें ढल जाए
जैसे आग में जल जाते है
बारिश में पिघल जाए


वाह रे आँखें! देख ज़रा,
तू कैसे पहेली बुझाता है
सवाल भी तू ही रखता है,
जवाब भी तू ही छिपाता है


साथ, समझ और सादगी,
सब मिले तो मिले है खुशी
पर सच है समय का भागी,
कब किसने सनक न चुनी


मिलती तो अब भी है,
हर राह पर सूखी पत्तियां
कोई दबा देता है,
कोई जला देता है


किसके शब्द है नए यहां
सबकी चाल पुरानी है
मिलना, जानना, मानना, छोड़ना
सबकी वही कहानी है

 

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