मजदूरी

हर वक्त चुभता है मुझे यह खयाल
मेरी छत बनानेवाला बेघर हो रखा है
मैं हर रात को तरसता हूं तारों के लिए
वह हर रात को तरसता है छत के लिए

मैं तोड़ना चाहता हूं भीतर की दीवारें
वह हर दिन एक नई ईट खोजता है
मैं छूना चाहता हूं आसमान को
वह चंद पैसों के लिए जमीन खोदता है

मैं लिख देता हूं चार लफ्ज़ इस चुभन में
पढ़ना लिखना उस तक कहां पहुंचता है
मैं भूल जाऊंगा कल उसकी कहानी
वह रोज मुझ–सा बनने का ख्वाब देखता है

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