पत्ती

एक बार एक पेड़ पर एक बेहद उत्सुक पत्ती का जन्म हुआ। ये बाकी पत्तियों से थोड़ी छोटी थी पर एकदम हरी। इसे हवा के साथ लहराना बहुत पसंद था। मगर हर बार हवा आगे निकल जाती और यह उदास होकर अपने में सिमट जाती।

यह देख इसकी सखियों ने इसे बताया कि,

"बारिश के महीने में आंधी नाम की फर्राटेदार हवा आती है। तुम उसकी मदद से आजाद हो सकती हो।"

"सच्ची क्या?"

"हां, वह तुम्हें दुनिया की सैर कराएगी। लेकिन हमें भूल मत जाना।"

"बिल्कुल नहीं।"

और ऐसा हुआ भी। जब आंधी आई, पत्ती ने मौके का फायदा उठाया और पेड़ से अलग होकर उड़ चली। वो पल उसकी जिंदगी के सबसे खूबसूरत पल थे। न जाने कहाँ-कहाँ घूमी, कितनी गुलाटियाँ मारी। कोई बोझ नहीं था—बस मंद होकर उड़ती रही। एक पल आया कि हवा थम गई, और वो सड़क पर लेट गई।

पत्ती अब भी हरी थी मगर प्यासी। उसे अहसास हुआ कि उसे पानी पिलाने वाली टहनी तो अब पास है ही नहीं। बेचैन होकर उसने हवा को पुकारा,

"हवा ओ हवा, मुझे वापिस वहीं ले जाओ, जहां से लाई हो। ये प्यास सही न जाती।"

मगर वो हवा तो कब की चली गई। अब जो हवा उसके बदन को छू रही थी, न तो उसे जानती थी, न उसकी भाषा को। सड़कों में रहने वाली हवा को पेड़ों का चाल चलन मालूम होता भी तो कैसे?

समय बीतता गया, पत्ती प्यासी सड़क पर लेटी रही। अगर उसे कुछ नसीब हुआ तो बस सड़क पर गुजरती गाड़ियों से उछलता धुआं।

कुछ समय बाद नभ में बादल छाए। उन्होंने पाया कि बीच सड़क पर एक पत्ती सिमटी हुई लाचार पड़ी है। उसका रंग फीका पड़ गया और कुछ अंग अब टूटने लगे है। ये दशा देख बादल गरजे,

"तू चिंता न कर पत्ती, मैं आगया हूं। मैं तेरी प्यास मिटाऊंगा।"

पत्ती ये सुनते ही चिल्लाई। उसकी आवाज से उसके ऊपर जमी हुई धूल भी उछल पड़ी,

"नहीं, ऐसा मत करना। तुम बरस कर मेरा बदन तो गिला कर सकते हो पर मन नहीं। यहां से थोड़ी ही दूर, एक घना पेड़ है। वहां मेरी सखियां रहती है। बेहतर होगा तुम वहां बरसो। वहां उन्हें पानी पिलाने मिट्टी, जड़े, तना, टहनियां सब है। मेरी सखियां आजादी का मतलब नहीं समझती। मैं सब समझती हूँ।"

बादल ये सुनकर वहां से जाने ही लगे थे कि उन्होंने देखा एक व्यक्ति कहीं खोया हुआ सड़क पार कर रहा और उसके कदम पत्ती की ओर बढ़ रहे है। बादल ने पत्ती की तरफ निशाना लगाया और बिजली कड़का दी।

पत्ती बिजली से चूर हुई या व्यक्ति के पांव से ये किसे पता। पर अब वह हवा में मिल चुकी है, यह तय है। 

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