शायद मुझे कुछ पता नहीं

शायद मुझे कुछ पता नहीं
शायद मैं जानता हूं
मैं मानता हूं

बंद कमरा, एक खिड़की
कुछ पौधे, कुछ दीवारें
कुछ जीव, कुछ सितारें
कुछ कसक, कुछ लतीफे
कुछ कहानी, कुछ सही थे
क्या फर्क पड़ता है इन सब से?
क्यों हर वक्त इन्हें ताकता हूं?
शायद मुझे कुछ पता नहीं
शायद मैं जानता हूं
मैं मानता हूं

एक रूह की मजबूरी
एक दूरी से मंजूरी
एक प्यास है, एक ख्वाइश
एक साथ है गुंजाइश
सीने से चिपका है जो,
दिल को छूना चाह रहा
दिल में छिपा जो कुछ
बाहर आने से कतरा रहा
क्या अस्तित्व महज एक कोशिश?
क्या जिंदगी बस एक तड़प है?
शायद मुझे कुछ पता नहीं
शायद मैं जानता हूं
मैं मानता हूं

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