समझ

तुम दिल से प्यार चाहते हो
और जुबां पर नफ़रत रखते हो
ऐसा क्यों?

मान्यता हमने मानी
जो मानी सब बिछड़ गई
बिखर गए विश्वासघात से
निशा शेष प्रखर हुई
डर की चादर ओढ़ लिए
अंधेरों में चलते है
रोशनी को चाहते है
रोशनी से डरते है

ये जंग स्वः की स्वः से
जागी जब तुम चूर हुए
खुद से नाराज़ हो
खुद खुद से दूर हुए
जो बस इतना काफी था
बाकी खेल तो पासों का
चादर डर की लिपट गई
तुम समझे की तुम ओढ़ लिए

एक बार मिला छल
विश्वास मचल देता है
डर भौंकता है दिलों में
आंखों में शक पलता है
चित्त में बस जाती नफ़रत
पर हम कुछ न कहते है
पाश पाश हो जाते है
फिर भी पीड़ा सहते है

हिम्मत भर चेतना में
एक कदम रखो आगे
हवाएं रुख बदलेगी
उम्मीद से जो जागे
सितारों की ऊर्जा समक्ष
दिल का किवाड़ खोलो
नफ़रत से नफ़रत पलती
तुम प्रेम के बोल बोलो

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