
सनम
हाथ थे कोमल तेरे,
तो हाथ मेरे खिल उठे।
रात की यह चांदनी में,
दाग़ भी झिलमिल उठे।
ये बात ही नशीली है,
ये होंठ ही सुरीले हैं।
जो सुन ले तुझे एक दफ़ा,
तो दिल अपना दे चुके।
कसम खाएं क्यों भला,
रसम निभाएं क्यों भला?
प्यार सच्चा है अगर,
'सनम' तुझे कह चुके।
ज़िंदगी एक ही है शायद,
और मरना मज़बूरी।
वैसे भी कौन पूरा यहाँ,
कहानी सबकी अधूरी।
पर अगर मेरी कहानी का
एक क़िस्सा तुम बनो,
अगर मेरी रूहानी का
एक हिस्सा तुम बनो,
ये कविता,
अधूरी ही सही,
पर हसीन हो जाए।
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